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भारत सहित वैश्विक शारीरिक श्रम बल के समक्ष जोखिम:

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भारत सहित वैश्विक शारीरिक श्रम बल के समक्ष जोखिम:  

मामला क्या है?

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा 22 अप्रैल को जारी रिपोर्ट, ‘Ensuring safety and health at work in a changing climate’ के अनुसार, बढ़ते तापमान और बढ़ती श्रम शक्ति के कारण वैश्विक स्तर पर 70 प्रतिशत से अधिक श्रमिक अत्यधिक गर्मी के संपर्क में हैं, जो 2000 से 2020 के बीच 20 साल की अवधि में जोखिम अनुमान में 34.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने एक अध्ययन के आंकड़ों का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत जैसे देशों के गर्मी वाले और ग्रामीण क्षेत्रों में भारी शारीरिक श्रम करने वाले श्रमिकों में अज्ञात क्रोनिक किडनी रोग की महामारी बड़ी संख्या में श्रमिकों को प्रभावित कर रही है।

वैश्विक श्रमबल के समक्ष अत्यधिक गर्मी का खतरा:

  • ILO की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल अनुमानित 22.85 मिलियन व्यावसायिक चोटें और 18,970 मृत्यु अकेले अत्यधिक गर्मी के कारण होते हैं।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि 3.4 अरब श्रमिकों के कुल वैश्विक कार्यबल में से कम से कम 2.41 अरब श्रमिक हर साल अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आते हैं।
  • 2020 में, कार्यस्थल पर अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने के कारण अनुमानित 26.2 मिलियन श्रमिक क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित थे। ILO ने कहा कि लगभग 1.6 अरब श्रमिक सालाना सौर पराबैंगनी (UV) विकिरण के संपर्क में आते हैं, अकेले गैर-मेलेनोमा त्वचा कैंसर के कारण हर साल 18,960 से अधिक काम-संबंधी मौतें होती हैं।

श्रमबल के समक्ष कार्यस्थल से जुड़े प्रदूषण का खतरा:

  • इसमें कहा गया है कि लगभग 1.6 अरब आउटडोर श्रमिकों को वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का खतरा बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप सालाना 860,000 श्रमिकों की मृत्यु होती है।
  • इस बीच 870 मिलियन से अधिक कृषि श्रमिकों के कीटनाशकों के संपर्क में आने की संभावना है, जिसमें हर साल 300,000 से अधिक मौतें कीटनाशक विषाक्तता के कारण होती हैं।
  • हर साल काम से जुड़ी 15,000 मौतें परजीवी और वेक्टर जनित बीमारियों के कारण होती हैं।

रोजगार की स्थिति पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:

  • नौकरी छूटना और व्यवसाय पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से कृषि, वानिकी और मछली पकड़ने जैसे उद्योगों में व्यवधान के कारण नौकरी छूट सकती है। व्यवसायों को संपत्तियों की क्षति हो सकती है और परिचालन में रुकावट आ सकती है, जिससे रोजगार स्थिति प्रभावित हो सकती है।
  • श्रम उत्पादकता में कमी: बढ़ता तापमान श्रम उत्पादकता को कम कर सकता है, विशेष रूप से शारीरिक रूप से कठिन बाह्य कार्यों के लिए। बढ़ती गर्मी श्रमिकों की कार्य कुशलता को प्रभावित करता है।
  • जबरन प्रवासन और पारिस्थितिकी तंत्र के खतरे: जलवायु संबंधी घटनाएँ (जैसे बाढ़, सूखा, या समुद्र-स्तर में वृद्धि) लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर कर सकती हैं, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो सकती है। पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर नौकरियों को खतरा है।
  • लैंगिक असमानताओं का बढ़ना: निर्वाह कृषि में महिला श्रमिकों को उनकी नौकरी की भूमिकाओं के कारण जोखिम बढ़ सकता है। भारी शारीरिक श्रम (जैसे, निर्माण, कृषि) करने वाले पुरुष भी जलवायु प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं।

‘नए कानूनों की आवश्यकता’:

  • इसलिए व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी विचार हमारी जलवायु परिवर्तन प्रतिक्रियाओं, नीतियों और कार्यों दोनों का हिस्सा होने चाहिए।
  • आईएलओ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के खतरों के कारण देशों को मौजूदा कानून का पुनर्मूल्यांकन करने या श्रमिकों की उचित सुरक्षा के लिए नए कानून बनाने की आवश्यकता हो सकती है।

 

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