श्रीनगर को मिला ‘विश्व शिल्प नगरी’ का दर्जा:
चर्चा में क्यों है?
- विश्व शिल्प परिषद (WCC) द्वारा ‘विश्व शिल्प शहर’ के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला श्रीनगर चौथा भारतीय शहर बन गया है। इसे तीन साल पहले इसे शिल्प और लोक कलाओं के लिए यूनेस्को क्रिएटिव सिटी नेटवर्क (UCCN) का हिस्सा नामित किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि जयपुर, मलप्पुरम और मैसूर तीन अन्य भारतीय शहर हैं जिन्हें पहले ही विश्व शिल्प शहरों के रूप में मान्यता दी गई है।
- इस सम्मान से हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे क्षेत्र में पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास को लाभ मिलेगा।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा श्रीनगर को विश्व शिल्प शहर के रूप में स्थापित करने का प्रयास:
- जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2021 में श्रीनगर को यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क के रूप में मान्यता देने के साथ ही विश्व शिल्प शहर के रूप में मान्यता देने के लिए भी आवेदन किया था।
- उल्लेखनीय है कि अभी तक, श्रीनगर और उसके उपनगरों में शिल्प कौशल के कम से कम 10 अलग-अलग रूप मौजूद हैं, जिनमें पेपर-मैचे, अखरोट की लकड़ी की नक्काशी, कालीन, सोज़नी कढ़ाई और पश्मीना और कानी शॉल शामिल हैं।
श्रीनगर को ‘विश्व शिल्प शहर’ के रूप में मान्यता मिलने से लाभ:
- ‘विश्व शिल्प शहर’ के रूप में मान्यता मिलने से श्रीनगर सहित जम्मू और कश्मीर में हथकरघा और हस्तशिल्प क्षेत्र पर परिवर्तनकारी प्रभाव पड़ेगा, जिससे यहां पर विकास, स्थिरता और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
- वैश्विक मान्यता बढ़ने से श्रीनगर के शिल्प को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेहतर दृश्यता मिलेगी, जिससे कारीगरों के लिए नए बाजार और अवसर खुलेंगे। साथ ही इससे क्षेत्र में अधिक निवेश और वित्त पोषण आकर्षित होने की संभावना है, जिससे बुनियादी ढांचे के विकास में सहायता मिलेगी और पारंपरिक तरीकों को संरक्षित करते हुए आधुनिक तकनीकों को पेश किया जा सकेगा।
विश्व शिल्प परिषद क्या है?
- विश्व शिल्प परिषद एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था है जो वैश्विक शिल्प कौशल और पारंपरिक शिल्प के संरक्षण, संवर्धन और उन्नति को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
- 1964 में स्थापित यह संस्था कई वर्षों से यूनेस्को से ‘परामर्शदात्री स्थिति (आधिकारिक भागीदारी)’ के तहत संबद्ध है।
- इसके संस्थापकों में समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय के अलावा ऐलीन ओसबोर्न वेंडरबिल्ट वेब और मार्गरेट एम. पैच शामिल हैं।
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