इसरो द्वारा अपने 100वें प्रक्षेपण में नई पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रह, NVS-02 की सफल लॉन्चिंग:
परिचय:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा में 29 जनवरी की सुबह 6:23 बजे NVS-02 को ले जाने वाले अपने GSLV-F15 को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जो इसरो का 100वां रॉकेट मिशन है। यह मिशन अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष वी नारायणन का भी पहला मिशन है, जिन्होंने हाल ही में पदभार संभाला है। यह इसरो का इस साल का पहला अभियान है।
- उल्लेखनीय है कि श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित होने वाला पहला बड़ा रॉकेट 10 अगस्त, 1979 को सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) था, और अब लगभग 46 साल बाद इसरो ने 100 प्रक्षेपण पूरी कर ली है।
NVS-02 उपग्रह की विशेषताएं:
- NVS-02 इसरो द्वारा विकसित दूसरी पीढ़ी के पांच उपग्रहों में से दूसरा है, जो NavIC की सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद करेगा, जिसका उपयोग नेविगेशन, सटीक कृषि, आपातकालीन सेवाओं, बेड़े प्रबंधन और यहां तक कि मोबाइल डिवाइस स्थान सेवाओं के लिए किया जाता है।
- यह उपग्रह पुराने NavIC उपग्रह IRNSS-1E का स्थान लेगा तथा कक्षा में 111.75°E पर स्थापित होगा।
- उल्लेखनीय है कि NavIC उपग्रहों की इन नई पीढ़ी का जीवनकाल 12 वर्ष है और प्रक्षेपित किया जाने वाला NVS-02 उपग्रह उच्च सटीकता सुनिश्चित करने के लिए तीन आवृत्ति बैंड (L1, L5, और S) में संचालित एक उन्नत नेविगेशन पेलोड ले जायेगा, जिसका सबसे अधिक उपयोग अमेरिकी GPS में किया जाता है। इससे फिटनेस ट्रैकर जैसे छोटे उपकरणों द्वारा अधिक उपयोग की संभावना है।
- इसमें सटीक समय-निर्धारण के लिए रुबिडियम परमाणु आवृत्ति मानक (RAFS) नामक एक सटीक परमाणु घड़ी भी है।
नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC) प्रणाली क्या है?
- नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC) भारत की स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट प्रणाली है, जिसे भारत में उपयोगकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय भूभाग से लगभग 1500 किलोमीटर आगे तक फैले क्षेत्र, जो इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र है, को सटीक स्थिति, वेग और समय (PVT) सेवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- NavIC दो प्रकार की सेवाएँ प्रदान कर रहा है, अर्थात् मानक स्थिति सेवा (SPS) और प्रतिबंधित सेवा (RS)। NavIC की SPS प्राथमिक सेवा क्षेत्र में 20 मीटर से बेहतर स्थिति सटीकता और 40 ns से बेहतर समय सटीकता प्रदान करता है।
- सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए उन्नत सुविधाओं के साथ NavIC बेस लेयर कांस्टेलेशन को बढ़ाने के लिए पांच दूसरी पीढ़ी के NavIC उपग्रहों अर्थात NVS-01/02/03/04/05 की परिकल्पना की गई है।
- दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों में से पहला उपग्रह NVS-01 29 मई, 2023 को GSLV-F12 पर प्रक्षेपित किया गया, जिसमें पहली बार स्वदेशी परमाणु घड़ी उड़ाई गई।
भारत द्वारा खुद का ‘GPS’, NavIC क्यों विकसित किया गया?
- भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास क्षेत्रीय उपग्रह-आधारित नेविगेशन सिस्टम है। चार वैश्विक उपग्रह-आधारित नेविगेशन सिस्टम हैं।
- उल्लेखनीय है कि NavIC का जन्म 1999 में कारगिल में पाकिस्तान के साथ हुई झड़प के बाद देश को हुए बहुत बुरे अनुभव से हुआ था, उस संघर्ष में अमेरिका द्वारा भारत को ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) डेटा तक पहुंच से वंचित कर दिया गया था। अमेरिका की इस कार्रवाई ने भारत को सैन्य स्वायत्तता के उद्देश्य से अपना स्वयं का क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन सिस्टम विकसित करने के लिए प्रेरित किया।
- भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) की योजना इसलिए बनाई गई थी ताकि भारत के पास अपना GPS समकक्ष हो जो पूरे देश में काम कर सके और इसकी सीमाओं से 1,500 किमी तक फैला हो।
- भारत के बाहर, जापान, फ्रांस और रूस में, ग्राउंड स्टेशनों के साथ पूरी तरह से चालू होने के बाद – NavIC ओपन सिग्नल 5 मीटर तक सटीक होंगे और प्रतिबंधित सिग्नल और भी सटीक होंगे। इसके विपरीत GPS सिग्नल लगभग 20 मीटर तक सटीक हैं।
- GPS के विपरीत, NavIC उच्च भू-स्थिर कक्षा में उपग्रहों का उपयोग करता है और चूँकि ये उपग्रह पृथ्वी के सापेक्ष एक स्थिर गति से चलते हैं, इसलिए वे हमेशा पृथ्वी पर एक ही क्षेत्र को देखते रहते हैं।
- NavIC सिग्नल भारत में 90 डिग्री के कोण पर आते हैं, जिससे उन्हें भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों, घने जंगलों या पहाड़ों में स्थित उपकरणों तक पहुंचना आसान हो जाता है।
जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) क्या है?
- इसरो के अनुसार GSLV-F15 भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) की 17वीं उड़ान है और स्वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ 11वीं उड़ान है। यह भारत के स्पेसपोर्ट श्रीहरिकोटा से 100वां प्रक्षेपण है।
- GSLV रॉकेट को कभी इसरो का ‘शरारती लड़का’ कहा जाता था, क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के सभी रॉकेटों में इसका प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। अब तक 16 लॉन्च में से इस रॉकेट के लिए 6 विफलताएँ रही हैं, जो कि 37% की बड़ी विफलता दर है। इसकी तुलना में भारत के नवीनतम बाहुबली रॉकेट LVM-3 की सफलता दर सौ प्रतिशत है।
- GSLV रॉकेट में भारत ने क्रायोजेनिक इंजन बनाने में निपुणता प्राप्त करने का अपना जन्मजात कौशल दिखाया था, एक ऐसी तकनीक जिसमें महारत हासिल करने में भारत को दो दशक लग गए थे, क्योंकि अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को इसकी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से इनकार कर दिया था।
नोट : आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए Vajirao & Reddy Institute के साथ जुडें.
नोट : हम रविवार को छोड़कर दैनिक आधार पर करेंट अफेयर्स अपलोड करते हैं
Read Current Affairs in English ⇒