दुनिया के सामने गंभीर जल संकट की स्थिति: WMO
चर्चा में क्यों है?
- 7 अक्टूबर को WMO द्वारा जारी ‘वैश्विक जल संसाधन स्थिति’ रिपोर्ट वैश्विक जल आपूर्ति पर गंभीर तनाव को उजागर करती है, जिसमें लगातार पाँच वर्षों से नदी प्रवाह और जलाशयों में सामान्य से कम प्रवाह है। यह कमी समुदायों, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है।
- इसके अलावा, ग्लेशियरों ने पिछले 50 वर्षों में अपने सबसे बड़े द्रव्यमान नुकसान का अनुभव किया, 2023 वैश्विक स्तर पर व्यापक बर्फ हानि का दूसरा वर्ष है।
- इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2023 रिकॉर्ड पर सबसे गर्म वर्ष था, जिसमें लंबे समय तक सूखे और व्यापक बाढ़ की विशेषता थी।
वैश्विक जल संसाधन की स्थिति रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- वर्तमान में, दुनिया भर में 3.6 अरब लोग प्रतिवर्ष कम से कम एक महीने में अपर्याप्त जल की समस्या का सामना करते हैं, तथा ‘यूएन वाटर’ के अनुसार, 2050 तक यह संख्या बढ़कर पांच अरब से अधिक हो जाने की उम्मीद है।
- इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि ग्लेशियरों को पिछले पाँच दशकों में अब तक का सबसे बड़ा द्रव्यमान नुकसान हुआ है। 2023 लगातार दूसरा वर्ष होगा जिसमें विश्व के ग्लेशियर वाले सभी क्षेत्रों में बर्फ की हानि की सूचना मिली है।
- इस बीच, 2023 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया, जिसके कारण तापमान में वृद्धि हुई तथा व्यापक रूप से शुष्क परिस्थितियाँ बनीं, जिसके कारण लंबे समय तक सूखा पड़ा। लेकिन दुनिया भर में बाढ़ की भी बड़ी संख्या में घटनाएं भी देखी गयी थी।
- ये चरम जल विज्ञान संबंधी घटनाएँ प्राकृतिक रूप से होने वाली जलवायु स्थितियों – 2023 के मध्य में ला नीना से अल नीनो में परिवर्तन – के साथ-साथ मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन से प्रभावित थीं।
औसत से कम रहा नदियों का प्रवाह:
- ऐतिहासिक अवधि की तुलना में वर्ष 2023 में नदी निर्वहन की स्थिति सामान्य से अधिक शुष्क रही। 2022 और 2021 की तरह ही, वैश्विक जलग्रहण क्षेत्रों में से 50% से अधिक में असामान्य स्थितियाँ देखी गईं, जिनमें से अधिकांश में कमी थी।
- उत्तरी, मध्य और दक्षिण अमेरिका के बड़े क्षेत्रों में 2023 में भयंकर सूखा पड़ा और नदी के बहाव की स्थिति कम हो गई।
- एशिया और ओशिनिया में भी गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेकांग जैसे बड़े नदी बेसिन में लगभग पूरे बेसिन क्षेत्रों में सामान्य से कम जल प्रवाह देखी गई।
जलाशय अंतर्वाह और भंडारण की स्थिति:
- इस रिपोर्ट में लगातार तीसरे वर्ष भी यह संकेत दिया गया है कि 2023 में जलाशयों में भंडारण की स्थिति आम तौर पर समग्र निर्वहन स्थितियों को दर्शाता है, जिसमें वैश्विक संतुलन ज्यादातर औसत से नीचे या औसत है।
- विशेष रूप से, भारत में जलाशयों, वह भी पश्चिमी तट पर, औसत से नीचे और बहुत कम प्रवाह का अनुभव किया। हालांकि, भारत में गंगा नदी बेसिन में औसत से ऊपर जलाशय भंडारण देखा गया।
- उल्लेखनीय है कि जलाशय भंडारण न केवल जलवायु परिस्थितियों और प्रवाह से प्रभावित होता है, बल्कि भंडारण के मानवीय विनियमन से भी प्रभावित होता है। जब प्रवाह कम होता है, तब भी पानी को संग्रहित किया जा सकता है, जिससे जलाशय की मात्रा बढ़ जाती है लेकिन बहाव कम हो जाता है।
भूजल स्तर में गिरावट:
- भारत, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल की तरह ही, दक्षिण अफ्रीका में, अधिकांश कुओं में औसत से अधिक वर्षा के बाद सामान्य से अधिक भूजल स्तर दिखा।
- उल्लेखनीय है कि उच्च वर्षा भी जलभृतों को पुनः भरकर भूजल स्तर को बढ़ाने में प्रत्यक्ष योगदान देती है और यह प्रभाव भारत के कुछ भागों में देखा गया।
- वहीं लंबे समय तक सूखे के कारण उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में भूजल उपलब्धता में उल्लेखनीय कमी देखी गई। चिली और जॉर्डन में भूजल स्तर सामान्य से कम था, जिसमें दीर्घकालिक गिरावट जलवायु कारकों के बजाय अत्यधिक दोहन के कारण थी।
मृदा नमी और वाष्पोत्सर्जन की स्थिति:
- दुनिया भर में बड़े क्षेत्रों में मिट्टी की नमी का स्तर मुख्य रूप से सामान्य से नीचे या बहुत नीचे था, जिसमें उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व जून-अगस्त के दौरान विशेष रूप से शुष्क थे। मध्य और दक्षिण अमेरिका, विशेष रूप से ब्राजील और अर्जेंटीना में सितंबर-अक्टूबर-नवंबर में सामान्य से बहुत कम वास्तविक वाष्पोत्सर्जन हुआ। मेक्सिको के लिए, सूखे की स्थिति के कारण यह लगभग पूरे वर्ष तक चला।
- इसके विपरीत, अलास्का, पूर्वोत्तर कनाडा, भारत, रूस के कुछ भाग, ऑस्ट्रेलिया के कुछ भाग और न्यूजीलैंड सहित कुछ क्षेत्रों में मिट्टी में नमी का स्तर सामान्य से बहुत अधिक पाया गया।
ग्लेशियरों का पिघलना:
- सितंबर 2022 – अगस्त 2023 के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, ग्लेशियरों ने 600 गीगाटन से अधिक पानी खो दिया है, जो 50 वर्षों के अवलोकन में सबसे खराब है।
- यह गंभीर नुकसान मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तरी अमेरिका और यूरोपीय आल्प्स में अत्यधिक पिघलने के कारण है, जहाँ पिछले दो वर्षों में स्विट्जरलैंड के ग्लेशियरों ने अपनी शेष मात्रा का लगभग 10% खो दिया है।
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