Register For UPSC IAS New Batch

महाकुंभ 2025 में ‘मियावाकी’ वनारोपण पद्धति का उपयोग:

For Latest Updates, Current Affairs & Knowledgeable Content.

महाकुंभ 2025 में ‘मियावाकी’ वनारोपण पद्धति का उपयोग:

चर्चा में क्यों है?

  • 45 दिवसीय महाकुंभ 2025 उत्सव 26 फरवरी को समाप्त हुआ, जिसमें प्रयागराज में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया। इस आयोजन के लिए प्रयागराज में सौंदर्यीकरण और स्वच्छता पहल के हिस्से के रूप में, उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘मियावाकी’ पद्धति का इस्तेमाल किया गया। संस्कृति मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, प्रयागराज प्रशासन ने इस तकनीक के माध्यम से शहर भर में 56,000 वर्ग मीटर भूमि को कवर किया।
  • उल्लेखनीय है कि इस पद्धति का इस्तेमाल शहरी क्षेत्रों में “ऑक्सीजन बैंक” बनाने और जंगलों को फिर से आबाद करने के लिए किया जाता है, जो जापान में उत्पन्न एक वनीकरण विधि। इस पद्धति का इस्तेमाल पहले मुंबई और चेन्नई और दुनिया भर में किया जा चुका है, लेकिन इसकी कुछ आलोचना भी हुई है।

‘मियावाकी’ पद्धति या ‘मियावाकी वन’ क्या होता है?

  • ‘मियावाकी वन’ का नाम एक जापानी वनस्पतिशास्त्री और पारितंत्र विज्ञानी डॉ अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित तकनीक के नाम पर रखा गया है, जिसके तहत विभिन्न प्रजातियों के पौधे एक दूसरे के करीब लगाए जाते हैं, जो अंततः घने शहरी जंगल में विकसित हो जाते हैं।
  • इस पद्धति को 1970 के दशक में विकसित किया गया था, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से हिस्से के भीतर हरित आवरण को सघन करना था।
  • इस विधि के प्रयोग से पौधों की वृद्धि दस गुना तेज होती है, जिसके फलस्वरूप विकसित वन तीस गुना अधिक सघन होता है।

मियावाकी वृक्षारोपण विधि:

  • इस विधि में प्रत्येक वर्ग मीटर के भीतर दो से चार विभिन्न प्रकार के देशज या स्थानिक पेड़ लगाना शामिल है।
  • इस पद्धति में उपयोग किए जाने वाले पौधे अधिकतर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद और पानी जैसे नियमित रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है।

मियावाकी विधि के लाभ:

  • इसकी शुरुआत के बाद से, मियावाकी पद्धति का उपयोग मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में किया गया है क्योंकि यह सीमित स्थानों में कई पौधे उगाने की अनुमति देता है।
  • देशज पेड़ों का घना, हरा आवरण उस क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जहाँ जंगल स्थापित किया गया है।
  • एक और लाभ यह है कि पौधे शुरुआती अवधि के बाद ज्यादातर आत्मनिर्भर होते हैं और उन्हें खाद और पानी जैसी नियमित देखभाल की जरूरत नहीं होती है।
  • पौधे वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से स्थानीय तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं और छाया प्रदान करते हैं। ध्यातव्य है कि शहरी क्षेत्रों में बढ़ते कांक्रीटीकरण और निर्माण गतिविधियों ने अक्सर बाहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक प्रचलित तापमान में योगदान दिया है – जिसे “हीट आइलैंड” प्रभाव के रूप में जाना जाता है। मियावाकी वन इसका मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं।

मियावाकी विधि की कमियां:

  • उल्लेखनीय है कि यह विधि वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो गई है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव मनुष्यों पर तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि, इसमें कुछ कमियां भी हैं।
  • सबसे पहले इसके लिए शुरुआत में ही काफी निवेश की आवश्यकता हो सकती है, और सीमित स्थान में पौधों के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए कुछ जनशक्ति की भी आवश्यकता होती है।
  • प्राकृतिक संरक्षणवादियों ने यह भी चेतावनी दी है कि मियावाकी वनों को, वनों की कटाई और प्राकृतिक संसाधनों की तेजी से कमी जैसी ग्रह को परेशान करने वाली प्रणालीगत समस्याओं के लिए, एकमात्र समाधान के रूप में नहीं देखा जा सकता है।
  • साथ ही शहरों में भी, मौजूदा शहरी नियोजन विधियों, संसाधन उपयोग और अपशिष्ट निपटान को बदले बिना केवल मियावाकी वनों के रूप ,में “मिनी-वन” लगाने से सीमित लाभ होने की संभावना है।

 

नोट : आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए Vajirao & Reddy Institute के साथ जुडें.

नोट : हम रविवार को छोड़कर दैनिक आधार पर करेंट अफेयर्स अपलोड करते हैं

Read Current Affairs in English

Call Now Button