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भारत की बेरोजगारी की समस्या के समाधान में बजट 2025-26 क्या कर सकता है?

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भारत की बेरोजगारी की समस्या के समाधान में बजट 2025-26 क्या कर सकता है?

अर्थव्यवस्था के समक्ष प्रमुख चुनौती क्या है?

  • भारत, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, अपनी सबसे युवा आबादी के साथ, अक्सर अपने जनसांख्यिकीय लाभांश और विश्व मंच पर बढ़ते कद के लिए जानी जाती है। सुर्खियां अक्सर वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि की प्रशंसा करती हैं और आशा की एक झलक पेश करती हैं। हालांकि, इन आशाजनक आंकड़ों के पीछे, बेरोजगारी का चुनौतीपूर्ण मुद्दा छिपा है।
  • उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण फरवरी में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट पेश करने की तैयारी कर रही हैं, ऐसे में बेरोजगारी की चुनौती को संबोधित करना केंद्र में होना चाहिए। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, बेरोजगारी से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों के बिना, भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश एक जनसांख्यिकीय आपदा में बदल सकता है।

अर्थव्यवस्था की कम होती वृद्धिदर चिंता का विषय:

  • हालांकि भारत अभी भी दुनिया की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं से आगे है, लेकिन हाल ही में भारत की अर्थव्यवस्था में कमतर वृद्धिदर के संकेत मिले हैं।
  • जुलाई-सितंबर तिमाही में वृद्धि दर घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई, जो सात तिमाहियों में सबसे कम है, जिससे भारत की बेरोजगारी की समस्या के समाधान की संभावनाओं पर और सवाल उठ रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने विकास पूर्वानुमान को 7.2 प्रतिशत से संशोधित कर 6.6 प्रतिशत कर दिया।
  • ऐसे में अर्थशास्त्रियों ने यह भी बताया है कि भारत की वृद्धि अपनी गति खो सकती है, जो वेतन में गिरावट और भारतीय उद्योग जगत द्वारा धीमे विस्तार में परिलक्षित हो सकती है।

रोजगार को लेकर उत्साहवर्धक आंकड़े उम्मीद की किरण जगाते हैं:

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने नवंबर 2024 में बताया कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों में शहरी बेरोजगारी जुलाई-सितंबर तिमाही में 6.4 प्रतिशत तक गिर गई, जबकि पिछली अवधि में यह 6.6 प्रतिशत थी।
  • उल्लेखनीय रूप से, महिला श्रम बल की भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 41.7 प्रतिशत हो गई है।
  • हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार यह प्रगति भारत के बेरोजगारी संकट के पैमाने को संबोधित करने के लिए अपर्याप्त है।

भारत के बेरोजगारी संकट के समाधान लिए आवश्यक उपाय:

  • भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अध्यक्ष संजीव पुरी के अनुसार, मोदी सरकार को उन श्रम-प्रधान उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसमें भारी रोजगार पैदा करने की क्षमता है, जैसे रेडीमेड गारमेंट, फुटवियर, फर्नीचर, पर्यटन, रियल एस्टेट और निर्माण। इन क्षेत्रों में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजनाएं या अन्य लक्षित उपाय भी रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि दिसंबर माह में, प्रधानमंत्री ने भी देश के कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक की, और उन सभी ने एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित किया, जिस पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, वह है रोजगार सृजन। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, भारत को अपनी शिक्षा को व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है ताकि युवा बाजार की मांगों के अनुसार खुद को कुशल बना सकें।
  • अतीत में विभिन्न उपायों की घोषणा की गई है, लेकिन सरकार द्वारा और अधिक किए जाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञ यह भी चाहते हैं कि सरकार देश भर में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के विकास में तेजी लाने के लिए अधिक धन जुटाए, जिससे अर्ध-कुशल और कम-कुशल श्रमिकों के लिए नौकरियों का एक विशाल पूल बनाने में मदद मिलेगी।

स्नातकों और उद्योग की मांग के बीच कौशल बेमेलता के संबोधन की आवश्यकता:

  • एक और बड़ी चुनौती स्नातकों और उद्योग की मांग के बीच कौशल का बेमेल होना है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2024 ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि औपचारिक शिक्षा प्राप्त भारतीय युवाओं में से केवल 50 प्रतिशत के पास ही रोजगार के लिए आवश्यक कौशल है।
  • इस अंतर को दूर करने के लिए, वित्त मंत्री राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना (NAPS) और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसे कार्यक्रमों को प्राथमिकता दे सकती हैं, जिसमें कौशल विकास केंद्रों के लिए अधिक धन उपलब्ध कराया जा सकता है।

MSME और आधारभूत संरचना को समर्थन:

  • यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वित्त मंत्री को भारत के MSME (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम) पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जो देश के लिए रोजगार सृजन के मामले में एक पावरहाउस बने हुए हैं। सितंबर 2024 के अंत तक, भारत के छोटे व्यवसायों ने 1.10 करोड़ नौकरियां पैदा कीं।
  • साथ ही शिक्षा को व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ जोड़ना तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता, हरित ऊर्जा, स्वचालन और रक्षा जैसे उभरते क्षेत्रों में उच्च कौशल वाली नौकरियों का सृजन करना भी वेतन अंतर को पाटने में मदद कर सकता है।

आगे की चुनौतियां और अवसर: 

  • गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, भारत को 2024 से 2030 के बीच औसतन 6.5 प्रतिशत की सकल मूल्य-वर्धित (GVA) वृद्धि बनाए रखने के लिए सालाना एक करोड़ नौकरियों का सृजन करने की आवश्यकता है। हालांकि, इसके लिए साहसिक और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
  • उल्लेखनीय है कि 2025 में नौकरी बाजार में 9 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, और आईटी, खुदरा, दूरसंचार और BFSI (बैंकिंग, वित्तीय सेवाएँ और बीमा) जैसे क्षेत्र उम्मीद की किरण हैं।
  • फिर भी भारत की भयावह बेरोजगारी की समस्या को दूर करने, मजदूरी में सुधार करने और इसके जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। वित्त मंत्री सीतारमण इस बजट में उपायों की घोषणा करके एक महत्वपूर्ण पहला कदम उठा सकती हैं। कौशल पहल से लेकर MSME का समर्थन और बुनियादी ढांचे में निवेश तक, उनके पास समावेशी और निरंतर विकास की नींव रखने का अवसर है।

 

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