भारतीय न्यायिक व्यवस्था में ‘कॉलेजियम प्रणाली’ से जुड़ा विवाद क्या है?
चर्चा में क्यों है?
- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया है, उनके नई दिल्ली स्थित आवास पर नकदी के बारे में एक रिपोर्ट के बाद, जहां 14 मार्च को आग लग गई थी।
- कानूनी हलकों में हलचल पैदा करने के अलावा, इन घटनाक्रमों की गूंज संसद में भी सुनाई दी, जब उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने न्यायाधीश के आवास पर नकदी से जुड़ी घटना का जिक्र करते हुए कहा, “अगर इस समस्या से निपटा गया होता, तो शायद हमें इस तरह के मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता”।
- उपराष्ट्रपति धनखड़ इस मामले में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम का जिक्र कर रहे थे, जिसे 2014 में संसद ने मंजूरी दी थी और 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।
भारतीय न्यायिक व्यवस्था में कॉलेजियम प्रणाली क्या है?
- कॉलेजियम वह प्रणाली है जिसके द्वारा भारत में उच्च न्यायपालिका – सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण किया जाता है।
- यद्यपि यह संविधान या संसद द्वारा प्रख्यापित किसी विशिष्ट कानून में निहित नहीं है, लेकिन यह पिछले कुछ वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुआ है, जिसे लोकप्रिय रूप से “न्यायाधीशों के मामले” के रूप में जाना जाता है।
- उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम एक पाँच सदस्यीय निकाय होता है, जिसकी अध्यक्षता भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) करते हैं, और इसमें उस समय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। वहीं, उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उस उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और दो अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
- अपनी प्रकृति के अनुसार, कॉलेजियम की संरचना बदलती रहती है, और इसके सदस्य केवल उस समय तक ही सेवा करते हैं, जब तक वे सेवानिवृत्त होने से पहले बेंच पर अपने वरिष्ठता के पदों पर रहते हैं।
कॉलेजियम प्रणाली कैसे काम करती है?
- सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किए जाने वाले जजों के नामों की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम करता है। इसी तरह हाई कोर्ट कॉलेजियम (अपने-अपने हाई कोर्ट के लिए) भी करते हैं, हालांकि उनकी सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।
- ये सिफारिशें सरकार तक पहुँचती हैं, जिसकी भूमिका इस प्रक्रिया में अनुशंसित व्यक्तियों के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो जांच करने तक सीमित है।
- जबकि सरकार आपत्तियाँ उठा सकती है और कॉलेजियम की पसंद के बारे में स्पष्टीकरण माँग सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम उसी बात को दोहराता है तो संविधान पीठ के फैसलों के तहत वह नामों को अनुमोदित करने के लिए बाध्य है।
- हालांकि वर्तमान समय में अनेक मामले में सरकार द्वारा अनेक नामों को दोबारा वापस भेजा गया है, जोकि सरकार और न्यायपालिका के बीच टकराव का एक और मामला बना था।
कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना क्यों की जाती रही है?
- आलोचकों ने बताया है कि कॉलेजियम प्रणाली अपारदर्शी है, क्योंकि इसमें कोई आधिकारिक तंत्र या सचिवालय शामिल नहीं है। इसे बंद कमरे में होने वाला मामला माना जाता है, जिसमें पात्रता मानदंड या यहां तक कि चयन प्रक्रिया के बारे में कोई निर्धारित मानदंड नहीं हैं।
- इस बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है कि कॉलेजियम की बैठक कब और कैसे होती है, और यह कैसे निर्णय लेता है, क्योंकि कॉलेजियम की कार्यवाही के कोई आधिकारिक विवरण नहीं हैं। ऐसे में इस प्रणाली पर भाई-भतीजा वाद का भी आरोप लगता रहा है।
- यह लंबे समय से न्यायपालिका और सरकार के बीच विवाद का मुद्दा भी रहा है।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का क्या मामला है?
- वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति एम एन वेंकटचलैया आयोग ने कॉलेजियम की जगह राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के गठन की सिफारिश की थी। इसमें मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से चुना जाने वाला एक प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होगा।
- उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में संसद में NJAC विधेयक को पेश किया था जिसे संसद ने लगभग सर्वसम्मति से मंजूरी दी थी साथ ही 16 राज्यों का अनुसमर्थन प्राप्त हुआ, लेकिन एक साल के भीतर ही सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने बहुमत के मत में कहा, “ऐसी वैकल्पिक प्रक्रिया को स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है, जो उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों के चयन और नियुक्ति के मामले में न्यायपालिका की प्रधानता सुनिश्चित नहीं करती है”।
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