अलग ‘भील प्रदेश’ की मांग भील जनजातियों द्वारा क्यों की रही है?
चर्चा में क्यों है?
- राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में आदिवासियों के प्रमुख तीर्थ स्थल मानगढ़ धाम से 19 जुलाई को चार राज्यों के 49 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग फिर जोरों से उठी। चारों राज्यों से आदिवासी समाज के हजारों लोग मानगढ़ धाम पहुंचे। उल्लेखनीय है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक आदिवासी राज्य के विचार पर पहले भी चर्चा हो चुकी है।
- हालांकि राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने एक बयान में जवाब दिया कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। हर व्यक्ति को मांग करने का अधिकार है और छोटे राज्य होने चाहिए क्योंकि यह विकास के लिए अच्छा है। हालांकि, जाति के आधार पर राज्य बनाना उचित नहीं है।
‘भील प्रदेश’ की अवधारणा क्या है?
- हाल के समय में पश्चिमी भारत में एक अलग आदिवासी राज्य की मांग पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) जैसी क्षेत्रीय पार्टियों द्वारा की गई थी। BTP का गठन 2017 में गुजरात में किया गया था, जिसमें यह मुद्दा एक प्रमुख एजेंडा था।
- उल्लेखनीय है कि भील समुदाय मांग कर रहा है कि चार राज्यों में से 49 जिले बनाकर भील प्रदेश बनाया जाए। इन जिलों को भील प्रदेश में शामिल करने की मांग है:
- राजस्थान: बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली
- गुजरात: अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरूच
- मध्यप्रदेश: इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी और अलीराजपुर
- महाराष्ट्र: नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार और वलसाड़
- उल्लेखनीय है कि भील समाज सुधारक और आध्यात्मिक नेता गोविंद गुरु ने पहली बार 1913 में आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग उठाई थी। यह मांग “मानगढ़ नरसंहार” के बाद हुआ था और जिसे कभी-कभी “आदिवासी जलियांवाला” भी कहा जाता है।
- इसमें 17 नवंबर, 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना द्वारा 1,500 से अधिक भील आदिवासियों को मार डाला गया था।
- स्वतंत्रता के बाद भील प्रदेश की मांग बार-बार उठाई गई।
आदिवासी अलग राज्य क्यों चाहते हैं?
- पहले राजस्थान में डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर क्षेत्र और गुजरात, मध्य प्रदेश आदि एक ही इकाई का हिस्सा थे। लेकिन आजादी के बाद आदिवासी बहुल क्षेत्रों को राजनीतिक दलों ने विभाजित कर दिया, ताकि आदिवासी संगठित और एकजुट न हो सकें। 2011 की जनगणना के अनुसार, राजस्थान की आबादी में आदिवासी लगभग 14% हैं और मुख्य रूप से वागड़ क्षेत्र में केंद्रित हैं, जिसमें प्रतापगढ़, बांसवाड़ा डूंगरपुर और उदयपुर जिले के कुछ हिस्से शामिल हैं।
- केंद्र सरकारों ने समय-समय पर आदिवासियों के लिए विभिन्न कानून, लाभ, योजनाएं लाईं है, लेकिन उनके क्रियान्वयन में धीमी गति से काम किया। उदाहरण के लिए शासन को विकेंद्रीकृत करने और आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के लिए 1996 में एक कानून, पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 बनाया गया था। राजस्थान सरकार ने 1999 में इस कानून को अपनाया और 2011 में इसके नियम बनाए। लेकिन 25 साल बीत जाने के बाद भी लोगों को इस कानून के बारे में पता ही नहीं है। यहां तक कि भाजपा और कांग्रेस के विधायकों और मंत्रियों को भी इस कानून के बारे में उचित जानकारी नहीं है।
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