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महिलाओं को ‘बाल देखभाल अवकाश’ से वंचित करना संविधान का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

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महिलाओं को ‘बाल देखभाल अवकाश’ से वंचित करना संविधान का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

चर्चा में क्यों है?

  • सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को कहा कि एक महिला कर्मचारी के लिए 180 दिनों के अनिवार्य मातृत्व अवकाश के अलावा दो साल की ‘चाइल्ड केयर लीव’ (CCL) एक संवैधानिक जनादेश है और इस तरह की छुट्टी से इनकार करना उसे नौकरी छोड़ने के लिए कहने के समान है।
  • यह कड़ी टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ की ओर से आई जब याचिकाकर्ता शालिनी धर्मानी, जो हिमाचल प्रदेश के एक सरकारी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं, ने शिकायत की कि उनका एक बच्चा दुर्लभ आनुवंशिक विकार से ग्रस्त है जिसे कई सर्जरी और निरंतर देखभाल की आवश्यकता है।

वर्तमान याचिका से जुड़ा मामला क्या है?

  • हिमाचल प्रदेश के एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर महिला ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर कर ‘चाइल्ड केयर लीव’ (CCL) देने की मांग की है। असिस्टेंट प्रोफेसर महिला को अपने बेटे की देखभाल करने के लिए छुट्टियां देने से इनकार कर दिया गया था।
  • उल्लेखनीय है कि महिला ने बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी की मांग करते हुए राज्य से संपर्क किया था क्योंकि उसका बेटा ‘ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा’, एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार से पीड़ित है। उनके लगातार इलाज के कारण उनकी सभी स्वीकृत छुट्टियाँ समाप्त हो गई थीं।
  • लेकिन राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43-सी के तहत प्रदान किए गए बाल देखभाल अवकाश के प्रावधान को न अपनाने के कारण उसका आवेदन अस्वीकार कर दिया गया था।
  • केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, की धारा 43-सी: उल्लेखनीय है कि केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, की धारा 43-सी, जिसमें वर्ष 2010 में संशोधन किया गया था, महिला कर्मचारियों को उनके विकलांग बच्चों के 22 वर्ष की आयु तक पहुंचने तक 730 दिनों की चाइल्डकैअर छुट्टी लेने की अनुमति देता, और सामान्य बच्चों वाली महिलाएं बच्चों के 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने तक इसका लाभ उठा सकती है।

याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय की पीठ का निर्णय:

  • हिमाचल में इस तरह के नियम की अनुपस्थिति पर आपत्ति जताते हुए सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि “कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी न केवल विशेषाधिकार का मामला है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 15 द्वारा संरक्षित एक संवैधानिक अधिकार है। एक मॉडल नियोक्ता के रूप में राज्य उन विशेष चिंताओं से अनभिज्ञ नहीं रह सकता जो कार्यबल का हिस्सा महिलाओं के मामले में उत्पन्न होती हैं”।
  • पीठ ने आगे कहा कि “महिलाओं को बाल देखभाल अवकाश का प्रावधान यह सुनिश्चित करने के एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य को पूरा करता है कि महिलाएं कार्यबल के सदस्यों के रूप में अपनी उचित भागीदारी से वंचित न रहें। अन्यथा, बाल देखभाल अवकाश के प्रावधान के अभाव में, एक माँ को कार्यबल छोड़ने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है। यह विचार उस मां के मामले में अधिक मजबूती से लागू होता है जिसके पास विशेष जरूरतों वाला बच्चा है”।
  • इस पीठ ने हिमाचल प्रदेश सरकार को तुरंत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया, जिसमें महिला कर्मचारियों को बाल देखभाल अवकाश के पूरे मुद्दे पर पुनर्विचार करने के लिए समाज कल्याण और महिला एवं बाल कल्याण विभागों के सचिव शामिल हों।
  • इस बीच, अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार से कहा अपने बेटे की देखभाल के लिए उसे असाधारण छुट्टी देने पर विचार करें, जो एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार, ओस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा (भंगुर हड्डी रोग) से पीड़ित है।

ओस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा (Osteogenesis Imperfecta):

  • ओस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा (OI) एक वंशानुगत (genetic) हड्डी विकार है जो जन्म के समय मौजूद होता है। इसे भंगुर हड्डी रोग के नाम से भी जाना जाता है।
  • OI के साथ पैदा हुए बच्चे में नरम हड्डियां हो सकती हैं जो आसानी से टूट (फ्रैक्चर) जाती हैं, हड्डियां जो सामान्य रूप से नहीं बनती है, और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

 

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